Thursday 1 October 2015

हमारे ये दोहरे मापदंड

अगर hypocrisy यानी क़ि डबल स्टैण्डर्ड यानी दोहरे मापदंड पर कोई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित की जाए तो भारत निश्चित रूप से जीत का प्रबल दावेदार होगा।भ्रष्टाचार हमारे लिए तब तक ही बुरा है जब तक हम टेबल के इस तरफ हैं। टेबल के उस तरफ जाते ही बढ़ती महंगाई और परिवार के खर्चे याद आ जाते हैं। लाखों करोडो के घोटालो के लिए भ्रष्ट नेताओ को कोसने वाली जनता अपना काम निकलवाने के लिए 100-50 रुपये ऊपर से देने को गलत नहीं मानती।

ठीक वैसे ही पहले हम अपनी नदियों को माँ बनाते हैं फिर उनकी आरती करते हैं और फिर उनको ही प्रदूषित करते हैं। हिंदी फिल्मो के हीरो हेरोइन के लिए तालियां बजने वाले अधिकांश पेरेंट्स अपने बच्चों के अंतर्जातीय विवाह को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते।

बड़े गर्व से हम बताते है क़ि हमारी महान संस्कृति में स्त्री को देवी माना गया है। ठीक भी है अब भला देवियों का इस दुनिया में क्या काम इसीलिए तो हम बच्चियों को जन्म लेने से पहले ही मार देते हैं। बेटी बचाने की बातें #selfiewithdaughtor पर आकर रुक जाती हैं। पंजाब और हरियाणा का हाल देख कर समझ आता है क़ि समस्या गरीबी की नहीं बल्कि मानसिकता की है। बेहतर होता अगर हम उनको आम इंसान ही मानते।

रोड पर खड़े होकर आती जाती लड़कियो को छेड़ने वाले लड़के अपनी बहन के साथ ऐसा कुछ होने पर बर्दाश्त नहीं कर पाते। हर लड़की में अपनी गर्लफ्रेंड ढूँढने वाला भाई ही अपनी बहन के ब्वॉयफ्रेंड की सबसे ज्यादा धुलाई करता है।

खैर लिखने वाले तो लिखते ही रहेंगे। यहाँ किसे फर्क पड़ रहा है। शरीर नष्ट हो जाते है पर hypocrisy तो आत्मा की तरह अजर अमर है। लगता है यहाँ तो सब ऐसे ही चलता रहेगा।

जनसत्ता 2 अक्टूबर 2015 में भी प्रकाशित

http://epaper.jansatta.com/603025/Jansatta.com/Jansatta-Hindi-02102015?show=touch#page/5/2


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